Train पटरी कैसे बदलती है ? जब किसी स्टेशन पर दो ट्रैन एक साथ पहुंच जाती है एक टाइम से और दूसरी देरी से तो उनमे से किस ट्रैन को पहले जाने देना चाहिए। साथ ही साथ अपने ये भी देखा होगा जब ट्रैन स्टेशन को क्रॉस करती है तो स्टेशन मास्टर अपने बाये हात में हरा और दये हाथ में लाल झंडा लेकर क्यों खड़ा रहता है। हरे झंडे का ये संकेत होता है के ट्रैन में कोई दिक्कत नहीं है और उसको जाने दिया जाए, हरा खंडा आगे जाने का संकेत देता है और लाल झंडा ट्रैन को रोकने के लिए इस्तेमाल होता है यदि स्टेशन मास्टर को ट्रैन या रेल में कोई गड़बड़ी दिखती है तो वह लाल झंडा दिखाकर ट्रैन के ड्राइवर को गाडी रोकने का संकेत देता है।
रेल कैसे बनाई जाती है ?
बहुत से लोग ट्रैन को रेल समझ लेते है दरअसल ट्रैन अलग होती है और रेल अलग। रेल, ट्रैन की पटरी को कहा जाता है, आपने पटरी के दोनों तरफ लोहे से बनी लाइन को देखा होगा जिस पर ट्रैन चलती है उसी को रेल बोला जाता है। रेल के साथ स्लीपर भी जुड़े होते है जो रेल को पकड़ के रखते है। आपने रेल के बिच में सीमेंट से बने स्लीपर को तो देखा ही होगा, पहले के ज़माने में लकड़ी के स्लीपर इस्तेमाल किए जाते थे पर बारिश के दिनों में वे लकड़ी के स्लीपर भीगकर ख़राब हो जाते थे। इस समस्या से बचने के लिए सीमेंट के स्लीपर इस्तेमाल करना चालू हो गए। रेल और स्लीपर को एक साथ जोड़ने के लिए clip fastening का इस्तेमाल होता है।
ट्रैन पटरी कैसे बदलती है ?
ट्रैन को दूसरी पटरी पर भेजने के लिए या पटरी बदलने के लिए, point machine का इस्तेमाल किया जाता है, जो ट्रैक पर लगी होती है पहले हाथो से पटरी को बदला जाता था, पर अब ये काम ऑटोमेटिक होता है। अब ध्यान से समझिए पटरी कैसे बदली जाती है. ट्रैन का पहिया पटरी की या लोहे के रेल के अन्दर की और ज्यादा निकला होता है, जब ट्रैन main line या main track पर होती है तो उस main track से दो पटरिया जुडी होती है। अगर स्टेशन राइट साइड में है और ट्रैन को राइट साइड के स्टेशन पर पहुंचना है तो पॉइंट मशीन से राइट साइड का एक रेल main ट्रैक की लेफ्ट साइड के लोहे के रेल से चिपक जाऐगा जिससे ट्रैन का पहिया राइट साइड के रेल पर चलने लगेगा और गाडी राइट स्टेशन पर पहुंच जाएगी। ये ही चीज लेफ्ट साइड के लिए भी की जाती है।
जब कोई ट्रैन main line पर होती है और स्टेशन पर पहुंचने के बाद उसको लूप ट्रैक पर जाना होता है तो उसके लिए main ट्रैक से लूप ट्रैक को जोड़ा जाता है जिससे वो ट्रैन अपने स्टेशन पर पहुंच जाए, और main ट्रैक खली हो सके। आपने स्टेशन पर बहुत सारी पटरियों को देखा होगा इसमें से main लाइन को छोड़कर बाकि सब लूप ट्रैक होते है जो main ट्रैक से जुड़े होते है। लूप ट्रैक का इस्तेमाल बड़े स्टेशन पर ज्यादा किया जाता है बड़े स्टेशन पर बहुत सारी ट्रैन आती है सबकी टाइमिंग अलग होती है लूप ट्रैक एक साइड ट्रैक का काम करता है जिससे सामने से आने वाली या पीछे से आने वाली ट्रैन को main ट्रैक खली मिले और उसको आगे जाने का रास्ता मिल सके।
पटरी के चारो ओर पत्थर क्यों बिछाए जाते है ?
- ट्रैक को मजबूती देने के लिए और ताकि ट्रैक इधर उधर ना खिसके।
- पत्थर की वजह से रेल के बिच में घास या झाड़ नहीं उग पाते है
- पत्थर ट्रैक के नीचे की मिटटी को खिसकने से रोकता है जिससे कोई दुर्घटना ना हो सके
- बारिश के मौसम में पटरी पर पानी नहीं रुकता है
- इन पत्थरो को ballast बोला जाता है
- इंडियन ट्रैन स्टेशन की लम्बाई 640 m होती है
- एक्सप्रेस ट्रैन के तब्बे की लम्बाई 24 m होती है
- नार्मल ट्रैन के एक डब्बे लम्बाई 22 m होती है
- माल गाडी के डब्बे की लम्बाई 15 m होती है