Buddhist Story: #2 अपनी जिंदिगी से परेशान हो तो इस कहानी को पढ़ो | अपने दुःख को दूर कैसे करे ? | Buddhist inspirational Story

hindiiwayjt
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मनोज नाम का एक लड़का एक नगर में रहता था। वह अपने जीवन में बहुत दुखी  था। उनके दुःख का कारण था के वो अपने जीवन में अब तक कुछ भी हासिल नहीं कर पाया था बेरोजगार था। उसके माता पिता उसे बहुत ताने मारते थे। की तुम्हारे सारे दोस्त कुछ ना कुछ कर रहे हैं लेकिन तुम अभी भी घर बैठे हुए हो? दोस्तों के बीच भी हमेशा उसका मजाक उड़ाया जाता था। वह कहीं जाता भी था तो लोग उससे पूछते थे। की क्या कर रहे हो बीटा? उसे यह बताने में शर्म आती थी ।

 के वो कुछ नहीं कर रहा है। धीरे धीरे उसने रिश्तेदारों और लोगो से मिलना जुलना कम कर दिया। वह ज्यादातर समय घर पर ही रहता था। वह अकेले में भगवान और अपनी किस्मत को कोसता रहता। अब उसे अपना जीवन बोझ सा  लगने लगा था। कभी कभी वह सोचता कि कब वह कुछ करने के लायक बनेगा या नहीं और फिर वो सोचता कि ऐसी जिंदिगी जीने से अच्छा मर जाऊ 1 दिन वह अपने नगर की एक गली से गुजर रहा था। तभी उसने देखा कि एक गुरु दुख और परेशानियों पर उपदेश दे रहे हैं। वह भी उसी भीड़ में सबसे पीछे बैठ गया और उन गुरु के प्रवचन सुनने लगा। गुरु कह रहे थे कि दुख एक शिक्षक की तरह है जो हमें जीवन की सच्चाई दिखाता है। और हमें जीवन जीने का सही तरीका सिखाता है अगर आप चाहे तो जिंदगी को जीना भी सीख सकते हैं और जो चाहे उसे हासिल कर सकते है। या फिर चाहो तो एक कोने में बैठकर रो सकते हो। इन सारी बातों को मनोज बहुत ध्यान से सुन रहा था, लेकिन उपदेश की ये बातें पसंद नहीं आई। और उसने खड़े होकर गुरु जी से कहा कि कुछ भी सिखाने से दुख दूर नहीं होता। इसमें दर्द ही दर्द होता है। 

दुख की पीड़ा अनंत हैं। लगता है कि इसके बाद कुछ होने वाला नहीं है। इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। और इसके सामने तो मौत भी छोटी लगती है। उसकी ये बातें सुनकर गुरु ने कहा। बेटा तुम्हारा दुख क्या है? मनोज ने उनके सामने अपनी सारी बातें बताई और उसने गुरु से पूछा। की मेरे इन दुखों का आपके पास कोई उपाय है? ये सुनकर गुरु मुस्कुराए और उससे कहाँ, तुम उस दिन मेरे पास आना जब तुम्हारे जीवन में वास्तविक दुःख आए।  मैं उस दिन तुम्हारी समस्या का समाधान जरूर दूंगा। ये कहकर गुरु वहाँ से चले गए। मनोज ने सोचा, क्या ये मेरा दुख नहीं है? तो क्या मैं जिस दर्द से गुजर रहा हूँ? वो असली दुख नहीं है? क्या मेरा दुख कोई नहीं समझ सकता? जब माँ बाप नहीं समझते तो भला गुरु क्या समझेंगे? उस दुखों से परेशान होकर मनोज ने एक फैसला किया कि अब वो कुछ ना कुछ करेगा। 

मनोज ने एक छोटा बिज़नेस शुरू किया। पर उसे सफलता नहीं मिल पाई , लेकिन ये देख कर उसके घरवाले खुश थे। के वो कोशिश तो कर रहा है। वह अपने बिज़नेस में लगा रहा और धीरे धीरे उसे सफलता मिलने लगी। फिर उसने रफ्तार पकड़ी और केवल 3 साल के अंदर ही वो एक बड़ा बिज़नेस मैन बन गया। अब मनोज के आसपास ऐसे कई लोग थे जो उसकी परवाह करते थे। और उससे प्यार करते थे, और उसके परिवार के सदस्य थे, जो उसकी तारीफे करते करते थकते नहीं थे। रोज उसके दोस्तों की संख्या बढ़ती जा रही थी। अब वह अपनी जिंदगी से बहुत खुश था। उसके कुछ दोस्तों ने उन्हें सलाह दी कि जब तुम एक बड़ा बिज़नेस मैन बनकर बहुत खुश हो तो सोचो जब तुम इस शहर और इस राज्य के सबसे बड़े बिजनेसमैन बन जाओगे तो तुम्हे कितनी खुशी होगी। और तुमसे कितने लोग जुड़ना चाहेंगे? तुम्हारी कितनी बड़ी ख्याति होगी और खुद राजा भी तुमसे दोस्ती करना चाहेंगे। और जरूरत पड़ने पर आपसे पैसे भी उधार लेंगे। 

अपने दोस्तों की ये बाते मनोज के मन में बैठ गई। अब वो और ज्यादा पैसे कमाने की कोशिश में लग गया, लेकिन उसे ये सब बहुत ही जल्दी चाहिए था। वह बिलकुल भी समय बर्बाद नहीं करना चाहता था। वो अपना ज्यादा समय इन चीजों को हासिल करने में लगाने लगा इसलिए, वह ऐसे काम करने लगा जो सही नहीं थे। उसने पैसे उधार लेना शुरू कर दिया। ज्यादा मुनाफा कमाने के लालच में वह अपने माल में मिलावट करने लगा। उसने कई बिज़नेस मैन के खिलाफ़ भी साजिश रची और उन्हें डराया धमकाया। जैसा उसके दोस्त कहते थे, वो वैसा ही करता था। वो इन तरीकों से ज्यादा पैसा कमा रहा था, लेकिन अब उसका जीवन पहले जैसा नहीं रहा। उसका मन बिलुक अशांत था और और उसे रात को नींद भी नहीं आती थी। वह हमेशा सोचता ही रहता था। इतना सब कुछ पाने के बाद भी वो सुखी नहीं था। 

1 दिन मनोज अपनी गाड़ी से कहीं जा रहा था तभी रास्ते में उसे गुरु का आश्रम दिखाई दिया। और और वो गुरु के पास जाकर बोला। गुरु जी आपने मुझे एक बार कहा था। जब कभी जीवन में सच्चा दुःख आए तो मेरे पास आ जाना अब मैं बहुत दुखी हूँ। मेरी नींद हराम हो गई है, मुझे कहीं भी शांति नहीं मिल रही है। इस तरह मनोज ने अपनी सारी समस्याएं गुरु को बताई। गुरु ने कहा, जब तुम पहली बार मुझसे मिलने आए थे तब भी तुम किसी दुख में थे, आपने उस दर्द से तुमने क्या सीखा? मनोज ने कहा के सिर्फ सोचने और चिंता करने से कुछ नहीं होने वाला। अपनी सपने को सच करने के लिए मेहनत भी करनी जरूरी है और सिर्फ मेहनत करने से कुछ नहीं होता। परिणाम भी मिलना चाहिए। जब आपको लगे कि आपका लक्ष्य हासिल नहीं होने वाला तब रास्ते में चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाए, मन कितना भी निराश क्यों ना हो, अब कुछ नहीं होने वाला है। तब खुद पर आत्मविश्वास करो, मैं जो भी कर रहा हूँ उसमें जरूर सफल होकर दिखाऊंगा। 

लोग केवल कामयाब लोगों का ही सम्मान करते हैं। कोई कितना भी अच्छा क्यों ना हो? वह हमेशा लोगों की नजरों में बोझ ही बने रहते हैं। ये सब सुनकर गुरु मुस्कुराए और बोले ये वास्तविक दुख नहीं है। तुम्हारे जीवन में वास्तविक दुख आए तब मेरे पास आना मैं उसे ठीक कर दूंगा। सफल ने जाते समय। गुरु को सोने के सिक्कों से भरा घड़ा भेंट किया ये देखकर गुरु ने कहा कि यह मेरे किसी काम का नहीं है। उस पेड़ के नीचे एक गड्ढा खोदकर गाड़ दो। मनोज ने घड़े को पेड़ के नीचे दबा दिया। जैसा गुरु ने बताया उसने वैसा ही किया और वहाँ से चला गया। 

कुछ दिनों से उसका कारोबार ठीक चल रहा था, लेकिन व्यापार के गलत तरीके के काम करने पर उसे धीरे धीरे व्यापार में घाटा होने लगा। उसकी सारी दौलत धीरे धीरे खत्म होती जा रही थी और 1 दिन ऐसा भी आया जब उसके पास कुछ भी नहीं बचा। और उस पर कर्ज का बोझ चढ़ गया, लेकिन वो थोड़ा टेंशन फ्री था क्योंकि उसने अपना सारा कर्ज अपने दोस्तों से लिया था। उसने सोचा था कि उसके दोस्त बुरे वक्त में उसके साथ खड़े रहेंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जैसे ही बुरा वक्त आया दोस्त पहले उससे कर्ज मांगने लगे। अगर उसने कर्ज नहीं लौटाया तो उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी भी देने लगे। उनके सभी शुभचिंतक और प्रिय जन उससे दूर हो गए। उसके दोस्त जो उसके साथ मस्ती किया करते थे, अब उन्होंने भी उससे मु फेर लिया था। उसका परिवार, उसकी गलतियां और कमियां गिनने लगा। 

उसकी सारी संपत्ति नीलाम हो गई और उसके पास कुछ भी नहीं बचा। जब उसने अपने पिता से मदद मांगी तो पिता ने कहा कि मेरे पास थोड़ी सी संपत्ति है। अगर मैं तुम्हें दे दूंगा तो मैं तुम्हारी माँ को क्या कहूंगा? ये संपत्ति हमारा सहारा है। मनोज के मन में गहरा दुख छा गया। उसके आसपास कोई नहीं था जो उसके दुख को समझ सकें। लोगों के इस विश्वासघात के कारण वो अंदर से टूट गया था। वह सोचने लगा की अब जीने का कोई मतलब नहीं है। अब मौत ही मेरा सहारा है। वो आत्महत्या करने के लिए पहाड़ी पर जा रहा था। तब उसे याद आया कि गुरु ने उससे कहा था। तब मेरे पास आना जब तुम्हारे जीवन में वास्तविक दुख आए मनोज गुरु के पास गया और अपनी सारी बात सुनाई आँखों में आंसू लिए उसने कहा। गुरु जी  मेरे दुख का निवारण करो। तब गुरु ने उससे कहा कि जब जीवन में असली दुःख आए। तब मेरे पास आना। मैं इसे जरूर ठीक करूँगा। मनोज ने कहा तो ये क्या है? क्या मेरी जिंदगी में दुख नहीं है तो आखिर असली दुख है क्या? गुरु ने मनोज से कहा। की पहले तुम मुझे ये बताओ। की तुमने अपने दुख से क्या सीखा? तब मनोज ने कहा कि मैंने ये सीखा है जो लोग हमारे जीवन में आते हैं वह हमारी सफलता और प्रगति को देख कर आते है और वो हमें धोखा जरूर देते है। क्योंकि बुरे समय में वे हमारे साथ नहीं खड़े होंगे, वे अच्छे समय में ही हमारा फायदा उठाएंगे और बुरे समय में हमें छोड़ देंगे। 

उन लोगों पर ही भरोसा करे जो हमारे बुरे समय में भी हमारे साथ खड़े रहते हैं, लेकिन ऐसे लोग बहुत कम हैं, लेकिन जिनके पास है उन्हें उनकी सराहना करनी चाहिए। उनका अपमान नहीं करना चाहिए। कभी भी किसी के खिलाफ़ साजिश नहीं रखनी चाहिए। अपना काम ईमानदारी और धैर्य से करे और कभी लालची ना बने। अपने सारे दुख दर्द और अनुभव बताने के बाद मनोज, गुरू जी के सामने आंखो में आंसू लिए बैठ गया। कुछ देर बाद गुरु उठे और पेड़ के नीचे गड्ढा खोदा और वो घड़ा निकाला जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। उन्होंने मनोज को देकर कहा, मेने तुम्हसे कहा था के मेरे पास तब आना जब तुम्हारे जीवन में वास्तविक दुख हो तब में तुम्हारी मदद जरूर करूँगा। मनोज ने अपने गुरु को धन्यवाद दिया और उसे प्रणाम करके चला गया। 

उस पैसों से उसने फीस एक छोटा सा बिज़नेस शुरू किया। लेकिन अब वो छोटा व्यापारी बनकर बहुत खुश था। उसने पूरी लगन और ईमानदारी से कारोबार किया और जल्द ही वह अपने शहर का एक बड़ा व्यापारी बन गया। उसका जीवन सुख सुविधाओं से भर गया था। लेकिन कोई कितना भी अच्छा क्यों ना हो लेकिन जीवन में दुख तो आता ही है। तो मनोज के जीवन में भी दुःख आया। उसके माता पिता की मृत्यु हो गई। वे दोनों एक ही दिन मर गए। मनोज अपने माता पिता से बहुत प्यार करता था इसीलिए उनके निधन से उसे गहरा सदमा लगा। 

अंतिम संस्कार किया गया। उसने अपने माता पिता का शव जलते हुए देखा। तो उसका मन बेचैन हो गया। उसके मन में कई सवाल उठने लगे। वह घर वापस आ गया। उसने अपने माता पिता के घर और संपत्ति को देखा जिसके लिए उसके पिता हमेशा लड़ते थे आज वो खाली पड़ा था। जिन्होंने इसकी देखभाल की, इसके लिए लड़ने वाले इस दुनिया से चले गए। उसके पिता ने जो कुछ कमाया वो सब यहीं रह गया। 1 दिन पहले तक अपनी  संपत्ति के लिए उसके पिता मारपीट करते थे आज वो खुद इस दुनिया से चला गया। उसका मन ऐसे अनेक विचारों में भटक रहा था। वह अंदर से अकेला और डरा हुआ महसूस कर रहा था। उसे लगा की कुछ तो है लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था । इसलिए वह गुरु के पास फिर गया। उसे देखकर गुरु ने कहा क्या जीवन में कोई दुख है? मनोज ने कहा। वैसे तो जीवन में कोई दुख नहीं है, सब कुछ अच्छा चल रहा है। लेकिन आज मेरे माता पिता का देहांत हो गया है। मैं इस घटना से बेहद दुखी और परेशान हु गुरु ने कहा इसमें दुखी होने की क्या बात है? 1 दिन सब को मरना है, मुझे भी मरना है, तुम्हे भी मरना है, शायद तुम कल ही मर जाओ या आज भी मर सकते हो। मनोज ने कहा। क्या कह रहे हो गुरु जी मैं भी मर जाऊंगा, लेकिन मैं अभी जवान हु गुरु ने कहा कि सभी जी रहे हैं। 

यही सोच कर के मृत्यु केवल बूढ़ों को आती है, लेकिन ऐसा नहीं। जवान भी मर जाते हैं, बच्चे मर जाते हैं। मौत का उम्र से कोई लेना देना नहीं है। ये सभी को प्रभावित करता है। गुरु की ये बातें मनोज के मन में बैठ गई और वह चुपचाप चला गया। लेकिन उसका मन अभी भी बेचैन था, वो खाली महसूस कर रहा था। वह सारा दिन अपने बारे में ही सोचता रहता था कि वह कौन है, वह इस दुनिया में क्यों आया है? इस जीवन का लक्ष्य क्या है? ऐसे कई सवाल उसके दिमाग में लगातार उठ रहे थे, लेकिन उसे अपने किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था और उसका दुख। दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा था इसलिए कुछ दिन बाद वो फिर से गुरु के पास पहुंचा और बोला, स्वामी जी मैं बहुत दुखी हूँ क्योंकि मैं यह नहीं जान पा रहा हूँ की मैं कौन हूँ और मैं इस दुनिया में क्यों आया? यह सुनकर गुरु मुस्कुराए और बोले। आज तुम्हारे जीवन में पहली बार सच्चा दुख पैदा हुआ है । यह वास्तव में दुख कहलाने लायक है। हम नहीं जानते कि हम कौन हैं, हम क्यों आए? मनोज ने अपने गुरु से कहा कि उसकी दुर्दशा को दूर करें। गुरु ने कहा कि हम सभी इंसान जीवन भर संग्रह करते रहते है। मनोज ने कहा, कोई भी इंसान अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता, वह सिर्फ अकेला ही जाता है। मेरे माता पिता भी अपने साथ कुछ भी नहीं लेकर गए। 

धन, संपत्ति, वैभव सब कुछ यही पर छोड़कर चले गए। गुरु ने कहा। अब मेरी बात ध्यान से सुनो। इस संसार में हमें जो संग्रह करना चाहिए, वह हम नहीं करते, बल्कि चीजें हमारे सामने होती है, लेकिन हम उन्हें देखने की कोशिश नहीं करते। हमें इस दुनिया में जो कुछ भी इकट्ठा करना वह हम खुद हैं, हमें खुद को जुटाना होगा ताकि जब हम मरे तो हम एकजुट हो सके खुद को पहचानने में सक्षम होने के लिए। हमें प्यार, नफरत, गुस्सा, क्रूरता, प्रतिष्ठा, सम्मान, पहचान, धर्म, जाति सैकड़ों ऐसी चीजों और इच्छाओं में हम बाटे हुए है और टुकड़ों में जीवन जी रहे हैं। इस बटवारे के कारण हमारी चेतना कभी भी एक नहीं हो सकती। हमारी चेतना और शक्ति बिखरी हुई है, इसलिए हमारे पास इतना समय नहीं है, इतनी ऊर्जा नहीं की हम मुड़ सके और अपने भीतर देख सकते हैं। वास्तव में धन, सम्मान और सुविधाओं के अभाव को लोग दुख समझते हैं और जीवन भर के लिए इसे दुख कहकर रोते रहते हैं और समाधान खोजने का प्रयास करते रहते है। उन्हें अपना समाधान कभी नहीं मिल पायेगा, क्योंकि जिसे लोग दुख कहते हैं वह वास्तविक दुख नहीं है। 

ये सिर्फ एक आदमी की इच्छा है, उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती। इसीलिए व्यक्ति को कभी उनके सवालों का जवाब नहीं मिलता। इसलिए इन सबसे परे यदि आप अपने दुखों का परम समाधान चाहते हैं तो सबसे पहले खुद को समझना होगा। इस दुनिया से अपनी ऊर्जा वापस ले लो और इकट्ठा करो, अपने आप पर ध्यान केंद्रित करो और  ध्यान दो अपनी मृत्यु से पहले, अपने आप को जानने की कोशिश करो।  बिखरो मत। मनोज ने कहा, गुरूजी, क्या हम इस संसार को छोड़ दें? हमारी सभी इच्छाओं को मार देना चाहिए। किसी से प्रेम नहीं करना चाहिए। बच्चे नहीं करने  चाहिए। सम्मान की आशा छोड़ देनी चाहिए। गुरु ने कहा की भावनाओं और इच्छाओं से ऐसे बिखरे हुए मनुष्य में से बाहर निकल आओ। 

जैसे कोई पत्थर बहार से अलग होकर गिरे तो जिसपर पर्वत का कोई कंट्रोल नहीं होता सिवाय देखने या परेशान होना और कुछ खोना ठीक वैसे ही बिखरे हुए। मनुष्य की इच्छाएं बेकाबू और दर्दनाक है। उसका अनियंत्रित मन इच्छा करता रहता है और कल्पना करता रहता है और यह दुख देता है, लेकिन जब एक व्यक्ति अपने मन को एकत्र करता है। तो वह जो कुछ भी करता है, वह उसके नियंत्रण में होता है। फिर उसकी इच्छा से इच्छाएं भी उत्पन्न होती है। फिर मनोज ने कहा कि आपने मेरे असली दुख का समाधान कर दिया। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आपसे मैं खुद को समेटने और खुद को तलाशने की कोशिश करूँगा। 

गुरु ने कहा कि मानव शरीर में बहुत ऊर्जा और शक्ति है। लेकिन यह फालतू के कामों में बंटा हुआ। बेकार की बातों में लगा हुआ। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मशीन की तरह है और वह बिना सोचे समझे अपनी शक्ति बर्बाद कर रहा है और बिना किसी नियंत्रण के। इसीलिए इस शक्ति पर ध्यान दें अपनी चेतना और इसे इकट्ठा करे। मनोज  को अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गया। उसने अपने गुरु का धन्यवाद किया और चुपचाप चला गया।

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